अद्भुत मूर्तिया
यह कालिंजर दुर्ग में बने मंदिरो की मूर्तियां है । आप एक के बाद एक मूर्ति देख सकते है, आप हैरान रह जाएंगे, क्या इंसान इतना कामयाब भी हो सकता है की धरती पर ही इंद्र के राज्य जैसा स्वर्ग बना दे ??यह दुर्ग महाभारतकालीन ही है, विचित्र आकृतियां इसपर बनी है, अरब देश मे बनी महाभारतकालीन हिन्दू मूर्तियों तथा इस किले की मूर्तियों का मिलान कुछ कुछ हो जाता है।।
किले का दुर्भाग्य
१२०२ ई ० में मूहम्मद गौरी के पालतू गुलाम अल्तमश के साथ कुतुबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर दुर्ग को घेर लिया । यह दुर्ग परमार राजाओं की राजधानी था ,जिस समय कुतुबुद्दीन ने इसपर हमला किया, उस समय राजा परमिलदेव शासन कर रहे है । कुतुबुद्दीन और उसकी पूरी सेना को परमिलदेव ने मार भगाया था, ओर वह भी तब , जब कुछ ही महीनों पूर्व वह पृथ्वीराज से युद्ध कर आल्हा ऊदल को खोकर अपनी पूरी सेना का नाश करवा चुके थे । इतनी कमजोर स्तिथी में भी परमिल ने गौरी को हराया था । वास्तव में पृथ्वीराज चौहान के युद्ध अभियानों से देश को अपार हानि हुई थी, जिसमे उनके स्वयं के साथ अन्य सभी महान राजवंश भी भस्म हो गए । देश पर विदेशियों का अधिपत्य सदा सदा के लिए स्थापित हो गया । या अन्य राजा ही युद्ध से बच निकलते, एक ही समय मे एक से ज़्यादा योग्य लोग हो जाये, तो भी नुकसान है, किसी ने सही ही कहा है ।
दूसरी बार मुस्लिम सेना ने परमिलदेव पर फिर चढ़ाई की । इस बार की स्थायी सेना में हज़ारों नए मुसलमानों का ही ज़ोर नहीं था वरन् नए विदेशी मुस्लिम लुटेरों को भी भरा गया था । परमिलदेव वीरगति को प्राप्त हुए मृत शासक के मुख्यमन्त्री अजदेव ने बड़ी वीरता से दुर्ग की रक्षा की । बाद में दुर्ग आतंक , माया और धोखे से कब्जे में हुआ । फिर सदा की भाँति “ मन्दिरों को मस्जिद बनाया गया और बुतों ( देव - प्रतिमाओं ) का नामोनिशान तक मिटा दिया गया । पचास हजार लोगों के गले में गुलामी का फन्दा कसा गया और हिन्दुओं के रक्त से सारी ज़मीन रंजित हो गई । "
( इलियट एवं डाउसन , ग्रन्थ २ , पृ ० २३६ )
यह जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों के अनुसार है हम इस लेख की सत्यता की पुष्टि नही करते है,,,,,,,,,,,, अनुभव यादव
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