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आंदोलन क्यू करता किसान

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काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का दिव्य दर्शन आंदोलन क्यू करता किसान🇮🇳💯 आजाद आजाद भारत में आज आंदोलन क्यों करता किसान। आजाद भारत में आज आंदोलन क्यों करता किसान। खेतों की जगह रोड़ों पर आज क्यों बैठा किसान। एक तरफ जवान दूसरी तरफ रोडो पर संघर्ष करता  किसान।। ठंड में निद्रा को त्याग वीरान में विचरण करता क्यों किसान। भारत मां को जो लाल दे कर्ज में जो प्राण दे। पूछता है भारत आंदोलन क्यों करता किसान। अन्नदाता की बात मानता क्यों सिंहासन नहीं। अन्नदाता पर लाठियां भाजकर कुछ पता नहीं। फिर भी अन्नदाता की बातों को सिंहासन क्यों मानता नहीं।। अपनी दर्द पीड़ा को फिर भी वह छलकता नहीं। इस तस्वीर पर क्या लिखूं वृद्धो ने लाठी खाई। 750 किसानों ने आंदोलन में जान गवाई। फिर भी ना सिंहासन जागा किसानों ने आंदोलन चलाई। आजाद भारत में आज आंदोलन क्यों करता किसान।। अरे सत्ता मद के अहंकार को कितना ही निर्दयी कहूं। अरे निहत्थो पर गाड़ी चढ़ा दी पाप की परिभाषा कहूं।। सत्ता मद के अहंकार में इतना तुम तो भूलो मत। मानव हो मानव का सम्मान करो जानवर बनकर जियो मत।।            ...

अद्भुत मूर्तिया

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अद्भुत मूर्तिया  यह कालिंजर दुर्ग में बने मंदिरो की मूर्तियां है । आप एक के बाद एक मूर्ति देख सकते है, आप हैरान रह जाएंगे, क्या इंसान इतना कामयाब भी हो सकता है की धरती पर ही इंद्र के राज्य जैसा स्वर्ग बना दे ??यह दुर्ग महाभारतकालीन ही है, विचित्र आकृतियां इसपर बनी है, अरब देश मे बनी महाभारतकालीन हिन्दू मूर्तियों तथा इस किले की मूर्तियों का मिलान कुछ कुछ हो जाता है।। किले का दुर्भाग्य  १२०२ ई ० में मूहम्मद गौरी के पालतू गुलाम अल्तमश के साथ कुतुबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर दुर्ग को घेर लिया । यह दुर्ग परमार राजाओं की राजधानी था ,जिस समय कुतुबुद्दीन ने इसपर हमला किया, उस समय राजा परमिलदेव शासन कर रहे है । कुतुबुद्दीन और उसकी पूरी सेना को परमिलदेव ने मार भगाया था, ओर वह भी तब , जब कुछ ही महीनों पूर्व वह पृथ्वीराज से युद्ध कर आल्हा ऊदल को खोकर अपनी पूरी सेना का नाश करवा चुके थे । इतनी कमजोर स्तिथी में भी परमिल ने गौरी को हराया था । वास्तव में पृथ्वीराज चौहान के युद्ध अभियानों से देश को अपार हानि हुई थी, जिसमे उनके स्वयं के साथ ...

अंग्रेजो के परिवार ने कितना तानाशाही किया भारतीयों पर

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अंग्रेज अधिकारी का सेवा करता एक भारती (पूर्व1947) भारत में सेवा करने वाले ब्रिटिश अधिकारियों को इंग्लैंड लौटने पर सार्वजनिक पद/जिम्मेदारी नहीं दी जाती थी। तर्क यह था कि उन्होंने एक गुलाम राष्ट्र पर शासन किया है जिसकी वजह से उनके दृष्टिकोण और व्यवहार में फर्क आ गया होगा। अगर उनको यहां ऐसी जिम्मेदारी दी जाए, तो वह आजाद ब्रिटिश नागरिकों के साथ भी उसी तरह से ही व्यवहार करेंगे। इस बात को समझने के लिए नीचे दिया गया वाकया जरूर पढ़ें... एक ब्रिटिश महिला जिसका पति ब्रिटिश शासन के दौरान पाकिस्तान और भारत में एक सिविल सेवा अधिकारी था। महिला ने अपने जीवन के कई साल भारत के विभिन्न हिस्सों में बिताए, अपनी वापसी पर उन्होंने अपने संस्मरणों पर आधारित एक सुंदर पुस्तक लिखी। महिला ने लिखा कि जब मेरे पति एक जिले के डिप्टी कमिश्नर थे तो मेरा बेटा करीब चार साल का था और मेरी बेटी एक साल की थी। डिप्टी कलेक्टर को मिलने वाली कई एकड़ में बनी एक हवेली में रहते थे। सैकड़ों  लोग डीसी के घर और परिवार की सेवा में लगे रहते थे। हर दिन पार्टियां होती थीं, जिले के बड़े जमींदार हमें अपने शिकार कार्यक्रमों म...

गांव में 5 एकड़ में मकान शहर में 10 बाय 10 का किराएदार

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क्या ऐसी ही है हमारी जिंदगी  लड़के समय से पहले ही मर्द बन जाते है  इस कहानी में एक उम्र के बाद जिम्मेदारियां कितनी बढ़ जाती है यह घर से निकले हुए लौंडे है साहब, घर से निकले हुए लौंडे है ये, यह साले रोते नहीं हैं बस कमाते हैं रुकते नहीं है बस दौड़ते हैं साला इतना दौड़ते हैं इतना कमाते हैं कि साला इनके पास कुछ बचता ही नहीं है,₹20 के हवाई चप्पल से 4000 के बाद तक का सफर बाटा के जूते तक का सफर और फिर भी अपने गांव अपने वतन अपने घर लौटने के बाद गमछा और लुंगी पर ज़िंदा रहने वाले ये लौंडे है साहब। काश आपको समझा पाता कि घर से दूर रहना क्या होता है  गलियों के नवाब परदेश में मजदूर बन कर रह जाते है  हीरो वाली २४ इंच की साइकिल से चलने वाले लौंडे पल्सर १५० पर भी तन्हा हो जाते है  पर्व और त्योहारों में जब घर पर तरह तरह के पकवान बनते हैं तो दाल भात चोखा खाकर ,मां से झूठ बोल कर उसे पूरी सब्जी का नाम देकर रह जाते है उम्र के इस मोड़ पर अचानक से लड़के बड़े हो जाते है , छोटी बहनों से लड़ना छोड़ उनकी शादी के लिए पैसे इक्कठा करने लगते है , लौंडे से ल...

बावनी इमली पर क्रंतकारी को क्यू दी गई फांसी

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वीरता का  जीवंत गवाह #भारत की वो #एकलौती ऐसी घटना जब , अंग्रेज़ों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर लटका दिया था, पर वामपंथियों ने इतिहास की इतनी बड़ी घटना को आज तक गुमनामी के अंधेरों में ढके रखा। #उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले में स्थित बावनी इमली एक प्रसिद्ध इमली का पेड़ है, जो भारत में एक शहीद स्मारक भी है। इसी इमली के पेड़ पर 28 अप्रैल 1858 को गौतम क्षत्रिय, जोधा सिंह अटैया और उनके इक्यावन साथी फांसी पर झूले थे। यह स्मारक उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिन्दकी उपखण्ड में खजुआ कस्बे के निकट बिन्दकी तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर पश्चिम में मुगल रोड पर स्थित है। यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगों का विश्वास है कि उस नरसंहार के बाद उस पेड़ का विकास बन्द हो गया है। 10 मई, 1857 को जब बैरकपुर छावनी में आजादी का शंखनाद किया गया, तो 10 जून,1857 को फतेहपुर...

वृंदावन के महात्मा

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वृंदावन का एक साधू अयोध्या की गलियों में राधे कृष्ण - राधे कृष्ण जप रहा था । अयोध्या का एक साधू वहां से गुजरा तो राधे कृष्ण राधे कृष्ण सुनकर उस साधू को बोला - अरे जपना ही है तो सीता राम जपो, क्या उस टेढ़े का नाम जपते हो ?  वृन्दावन का साधू भड़क कर बोला - जरा जबान संभाल कर बात करो, हमारी जबान पान खिलाती हैं तो लात भी खिलाती है । तुमने मेरे इष्ट को टेढ़ा कैसे बोला ? अयोध्या वाला साधू बोला इसमें गलत क्या है ? तुम्हारे कन्हैया तो हैं ही टेढ़े । कुछ भी लिख कर देख लो-  उनका नाम टेढ़ा - कृष्ण उनका धाम टेढ़ा - वृन्दावन वृन्दावन वाला साधू बोला चलो मान लिया, पर उनका काम भी टेढ़ा है और वो खुद भी टेढ़ा है, ये तुम कैसे कह रहे हो ? अयोध्या वाला साधू बोला - अच्छा अब ये भी बताना पडेगा ? तो सुन -  यमुना में नहाती गोपियों के कपड़े चुराना, रास रचाना, माक्खन चुराना - ये कौन से सीधे लोगों के काम हैं ? और बता आज तक  किसी ने उसे सीधे खडे देखा है क्या कभी ? ......... वृन्दावन के साधू को बड़ी बेईज्जती महसूस हुई ,  और सीधे जा पहुंचा बिहारी जी के मंदिर अपना डंडा डोरिया पटक कर ...

मैथिली ठाकुर

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मुझे आज भी ध्यान है कैसे भोंडे कपिल शर्मा शो में कपिल ने मैथिली को गले लगाना चाहा (जैसा कि बालिवुडियों में चलन है, अरबियों की भांति गले लगकर अभिवादन करना) और मैथिली असहज हो गई क्योंकि उसके वह संस्कार नही हैं। मैंने कभी मैथिली को छोटी ड्रेस पहने, डबल मीनिंग गाने गाते या चिल्लाते तक नही सुना। वर्तमान में जहाँ हर गायक फूहड़पन, पश्चिमी वेशभूषा, बनावटी अंग्रेजी इत्यादी से ग्रसित है, वहाँ इस बेटी ने अपनी गरिमा और संस्कारों को बचा कर रखा है। एक गायिका के तौर पर और उससे भी अधिक एक सनातनी महिला के रूप में मैं मैथिली ठाकुर का सम्मान करता हूँ।  आशा हैं आप सदा ऐसी बनी रहेंगी। आपको बिहार खादी, हस्तशिल्प और हथकरघा का ब्रांड एंबेसडर बनने की शुभकामनाएं बहन 🙏 Maithili Thakur